खुली किताब की डरावनी गाथा: जब मद्रास हाईकोर्ट ने लोक सेवकों की बेनामी दौलत पर डाला प्रकाश

खुली किताब की डरावनी गाथा: जब मद्रास हाईकोर्ट ने लोक सेवकों की बेनामी दौलत पर डाला प्रकाश

Anam Ibrahim 
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*BBC OF INDIA .COM*


मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश, जस्टिस सीवी कार्तिकेयन, अपनी कुर्सी पर बैठे, एक गंभीर दस्तावेज को पढ़ रहे थे। दस्तावेज़ में लिखा था कि लोक सेवकों की संपत्ति और देनदारियों को RTI अधिनियम की धारा 8 के तहत "गुप्त" रखने की कोशिश की गई है। लेकिन अदालत की नज़रों में यह गुप्त जानकारी एक काली छाया की तरह थी, जो पूरे प्रशासनिक ढांचे में डर का संचार कर रही थी।.........


जज ने अपने हैमर को मेज पर मारा और कहा, "लोक सेवक, जो सरकारी तंत्र के भूत बनकर घूमते हैं, अब और छिप नहीं सकते। उनके सेवा रजिस्टर अब उस अंधेरे तहखाने से बाहर आएंगे, जहां उन्होंने अपने पाप छिपा रखे हैं।"

*हॉरर कहानी का मोड़*

अदालत में मौजूद सरकारी वकील ने कांपते हुए कहा, "माई लॉर्ड, अगर ये जानकारी सार्वजनिक हो गई, तो..."
"तो क्या?" जस्टिस कार्तिकेयन की आवाज़ बिजली की गड़गड़ाहट की तरह गूंजी।
"तो हमारे लोक सेवक एक डरावने सपने में फंस जाएंगे। उनके बंगले, उनकी विदेशी गाड़ियां, और उनके छुपे हुए बैंक खाते—सब उजागर हो जाएंगे। वे लोग रातों को सो नहीं पाएंगे, माई लॉर्ड।"

जज ने ठंडी हंसी के साथ कहा, "जब आम जनता दिन-रात अपनी मेहनत की रोटी के लिए पसीना बहा रही है, तो ये लोक सेवक किस आधार पर जनता की नज़रों से बच सकते हैं? ये रजिस्टर अब उस अंधकारमय रहस्य की तरह नहीं रहेंगे, जो केवल कुछ विशेष लोगों की नज़रों में सुरक्षित है।"

*बेचैन सरकारी अधिकारी*


इस फैसले के बाद, सरकारी दफ्तरों में अफरातफरी मच गई। हर लोक सेवक ने अपने सेवा रजिस्टर को "सुरक्षित" रखने के लिए ताबड़तोड़ योजनाएं बनानी शुरू कर दीं। कुछ ने अपने दस्तावेज़ जलाने की कोशिश की, तो कुछ ने उन्हें गंगा में प्रवाहित कर दिया। लेकिन हाईकोर्ट के आदेश ने उन्हें ऐसा महसूस कराया मानो उनकी सारी संपत्ति पर एक भूतिया प्रकाश डाल दिया गया हो।


*'सत्य का आरटीआई' और 'झूठ का राज'*

एक लोक सेवक, * नाम-पहचान छुपी रहेगी, आधी रात को अपनी अलमारी में रखे गुप्त दस्तावेज़ों को देखकर बुदबुदा रहा था, "अब जनता को कैसे जवाब दूंगा? मेरा फार्महाउस, मेरी विदेशी यात्रा, और वो स्विस बैंक खाता...सब उजागर हो जाएगा।"

लेकिन यह सिर्फ डर की शुरुआत थी। अगले दिन, जनता ने RTI के ज़रिए उनके हर कदम का हिसाब मांग लिया। सरकारी अधिकारी, जो कभी साहब कहलाते थे, अब खुद को एक भूतिया कहानी का पात्र महसूस कर रहे थे।

*न्याय का अंत (या शुरुआत?)*


मद्रास हाईकोर्ट ने अपने अंतिम फैसले में कहा, "जो लोक सेवक जनता के टैक्स के पैसों से ऐश करता है, वह जनता की नज़रों से बच नहीं सकता। उसकी दौलत और देनदारी अब उसी जनता के सामने पेश की जाएगी, जो उसका असली मालिक है।"

और इस प्रकार, न्याय ने एक काली परछाई को हटाकर उजाले का मार्ग दिखाया। लेकिन लोक सेवकों के लिए, यह फैसला एक डरावने सपने की शुरुआत थी। उनके हर दस्तावेज़ पर एक भूतिया साया मंडरा रहा था, और वह साया था—RTI का।