अमेरिका पर व्लादिमीर पुतिन का तंज- 'नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग जिम्मेदार नेता, किसी और के दखल की जरूरत नहीं'

Vladimir Putin का कहना है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जिम्मेदार नेता हैं और उनके बीच मुद्दे सुलझाने के लिए किसी और ताकत के दखल की जरूरत नहीं है।

अमेरिका पर व्लादिमीर पुतिन का तंज- 'नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग जिम्मेदार नेता, किसी और के दखल की जरूरत नहीं'

सेंट पीटर्सबर्ग

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शनिवार को इस बात पर जोर देकर कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग दोनों 'जिम्मेदार नेता' हैं, जो दोनों देशों के बीच मुद्दों का समाधान करने में सक्षम हैं। उन्होंने बिना नाम लिए अमेरिका पर तंज कसते हुए कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि 'क्षेत्र से इतर किसी भी ताकत' को इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

चार देशों के समूह क्वॉड (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) की रूस द्वारा सार्वजनिक रूप से आलोचना करने के बीच पुतिन ने कहा कि किसी राष्ट्र को किसी पहल में किस तरह शामिल होना चाहिए और उन्हें अन्य देशों के साथ किस सीमा तक संबंध बनाने चाहिए, यह आकलन करने का काम मॉस्को का नहीं है, लेकिन कोई भी साझेदारी किसी अन्य के खिलाफ एकजुट होने के मकसद से नहीं होनी चाहिए।

क्वॉड और इस समूह में भारत के शामिल होने पर मॉस्को की राय के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में पुतिन की यह टिप्पणी चीन के उस दावे की पृष्ठभूमि में आई है कि राष्ट्रों का यह समूह रणनीतिक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पेइचिंग के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है।

थियानमेन चौक नरसंहार: जब चीन ने निहत्थे छात्रों पर चढ़वा दिया था टैंक, 32वीं बरसी पर दुनिया भावुक

इस नरसंहार के समय चीन की राजधानी पेइचिंग में तैनात तत्कालीन ब्रिटिश राजदूत एलन डोनाल्ड ने लंदन पत्र भेजकर घटना का पूरा ब्योरा दिया था। पत्र में उन्होंने लिखा था कि इस घटना में कम से कम 10 हजार लोगों की मौत हुई थी। इस पत्र को ब्रिटेन के नेशनल आर्काइव्ज में रखा गया है। चीन में उस समय इस घटना की रिपोर्टिंग को भी चीन से बड़े पैमाने पर सेंसर कर दिया था। इस घटना की रिपोर्टिंग पर चीन में आज भी कड़े प्रतिबंध हैं।

जून 1989 में पेइचिंग के थियानमेन चौक पर लाखों की संख्या में लोकतंत्र समर्थक आंदोलनकारी इकठ्ठा हुए थे। इसमें बड़ी संख्या में छात्र और मजदूर भी शामिल थे। ये विरोध प्रदर्शन कम्यूनिस्ट पार्टी के पूर्व महासचिव और सुधारवादी हू याओबांग की मौत के बाद शुरू हुए थे। हू याओबांग को चीन की तत्कालीन सरकार ने राजनीतिक और आर्थिक नीतियों में विरोध के कारण पद से हटा दिया था। जिसके बाद उनकी हत्या कर दी गई थी।

छह हफ्ते तक चले इस प्रदर्शन को कुचलने के लिए 3-4 जून को चीन की सेना ने शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे निहत्थे नागरिकों पर बंदूकों और टैंकों से कार्रवाई की। इस कार्रवाई में बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी मारे गये थे। इस दौरान चीनी सेना के एक टैंक को रोकने की कोशिश करते हुए एक युवक की तस्वीर प्रकाशित होने के बाद यह स्थान पूरी दुनिया में मशहूर हो गया।

चीन आज भी पेइचिंग के ऐतिहासिक थियानमेन चौक नरसंहार को पूरी तरह से सही करार देता है। साथ ही,वह कई बार कह चुका है कि देश को चलाने के लिए उसका समाजवादी राजनीतिक मॉडल सही चुनाव है। पिछले साल चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने इस प्रदर्शन को एक राजनीतिक व्यवधान करार दिया था। उन्होंने कहा था कि हम चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद को जारी रखने के लिये प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने अमेरिका को वैचारिक पूर्वाग्रह दूर रखने, गलतियों को सुधारने और चीन के घरेलू मामलों में किसी भी तरह से दखलअंदाजी रोकने को कहा था।


पड़ोसी देशों के बीच होते हैं मुद्दे


उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत के साथ रूस की साझेदारी और मॉस्को और पेइचिंग के बीच संबंध में कोई 'विरोधाभास' नहीं है। पुतिन ने कहा, 'हां, मैं जानता हूं कि भारत और चीन के संबंधों से जुड़े कुछ मुद्दे हैं लेकिन पड़ोसी देशों के बीच अनेक मुद्दे हमेशा से होते हैं। हालांकि, मैं भारत के प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति, दोनों के रूख से अवगत हूं। वे बहुत ही जिम्मेदार लोग हैं और एक-दूसरे के साथ दृढ़ निश्चय और पूरे सम्मान के साथ पेश आते हैं। मुझे भरोसा है कि सामने कोई भी मुद्दा आ जाए, वे उसका समाधान निकाल ही लेंगे।'


उन्होंने कहा, 'लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि क्षेत्र से इतर किसी भी ताकत को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।'


भारत के साथ संबंधों का आधार विश्वास


पिछले वर्ष 5 मई को पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सेनाओं के बीच गतिरोध के हालात बने थे। यह 45 साल में पहली बार था कि गतिरोध के दौरान दोनों पक्षों के सैनिक मारे गए थे। पैंगोंग झील क्षेत्र से सैनिकों को पीछे हटाने के मामले में हालांकि सीमित प्रगति हुई है और टकराव के अन्य बिंदुओं पर भी ऐसे ही कदम उठाने के लिए वार्ता में गतिरोध बना हुआ है।

रूस और चीन के बीच बढ़ती करीबी और इसके भारत-रूस सुरक्षा और रक्षा सहयोग पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में पुतिन ने कहा कि भारत और रूस के बीच संबंध काफी तेजी से और सफलतापूर्वक बढ़ रहे हैं और इन संबंधों का आधार ‘विश्वास’ है।

उन्होंने कहा, 'हमारे भारतीय मित्रों के साथ इस उच्च स्तर के सहयोग की हम अत्यंत सराहना करते हैं। ये संबंध रणनीतिक प्रकृति के हैं। हमारे बीच अर्थव्यवस्था से लेकर ऊर्जा, उच्च प्रौद्योगिकी तक कई क्षेत्रों में व्यापक सहयोग है। जहां तक रक्षा क्षेत्र की बात है, उससे मेरा मतलब सिर्फ रूसी हथियारों की खरीद से नहीं है...भारत के साथ हमारे बहुत गहरे और मजबूत संबंध हैं, जिनका आधार विश्वास है।'

'भारत में ही मिलकर हथियारों पर काम कर रहे'


पुतिन ने जोर देकर कहा कि भारत और रूस विशेष रूप से भारत में ही अत्याधुनिक हथियार प्रणाली और प्रौद्योगिकियों के उत्पादन के लिए मिलकर काम कर रहे हैं और इस लिहाज से भारत, रूस का इकलौता ऐसा साझेदार है। उन्होंने कहा कि लेकिन हमारा सहयोग केवल यहीं तक सीमित नहीं है बल्कि यह बहुआयामी है।

अमेरिका, भारत, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस समेत विश्व की कुछ प्रमुख अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियों के चुनिंदा शीर्ष संपादकों के साथ बातचीत में रूसी राष्ट्रपति ने विभिन्न विषयों पर प्रश्नों के उत्तर दिए जिनमें रूस-अमेरिका संबंध, महामारी के हालात, रूस के विरूद्ध अमेरिकी पाबंदियां और गाजा जैसे विषय शामिल थे।

डिफेंस तकनीकी पर नजर रखने वाली वेबसाइट फ्लाइटग्लोबल की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन अपने एच-6 स्ट्रेटजिक बॉम्बर्स को हटाकर अब आधुनिक एच-20 स्टील्थ बॉम्बर को तैनात करने की योजना बना रहा है। कई विशेषज्ञों ने यह भी आशंका जताई है कि चीन का यह विमान भी उसके दूसरे अन्य विमानों की तरह तकनीकी की चोरी कर बनाया गया है। इस विमान के पैटर्न अमेरिका के बी-2 और बी-21 बॉम्बर्स से मिलते जुलते हैं। वहीं नेशनल इंट्रेस्ट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन का यह विमान अब भी रहस्यमय बना हुआ है। जबकि अमेरिका के बी -2 और बी -21 बॉम्बर्स कॉम्बेट प्रूवन हैं जिन्हें कई युद्धों और खुफिया मिशन में आजमाया जा चुका है। ऐसे में यह विमान अमेरिका के सामने कोई बड़ी चुनौती खड़ी करने में सफल नहीं हो सकता है।

चीन ने अपने रहस्यमयी H-20 बॉम्बर को पहली बार 2019 में Zhuhai Airshow में प्रदर्शित किया था। वहीं, न्यूज़ीलैंड हेराल्ड की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि H-20 सुपरसोनिक स्टील्थ बॉम्बर चीन की स्ट्राइक रेंज को डबल कर सकता है। दिलचस्प बात यह है कि अभी किसी भी प्लेटफार्म पर इस विमान के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। पेंटागन के 2018 और 2019 के वार्षिक चाइना मिलिट्री पॉवर रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया गया है। 2019 में प्रकाशित अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की वार्षिक चाइना मिलिट्री पॉवर रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन का H-20 विमान 8500 किलोमीटर की दूरी तक हमला करने में सक्षम है। यह परमाणु और गैर परमाणु (पारंपरिक) हथियार ले जाने में सक्षम है।

B-2 स्पिरिट दुनिया के सबसे घातक बॉम्‍बर माने जाते हैं। यह बमवर्षक विमान एक साथ 16 B61-7 परमाणु बम ले जा सकता है। हाल ही में इसके बेड़े में बेहद घातक और सटीक मार करने वाले B61-12 परमाणु बम शामिल किए गए हैं। यही नहीं यह दुश्‍मन के हवाई डिफेंस को चकमा देकर आसानी से उसके इलाके में घुस जाता है। इस बॉम्‍बर पर एक हजार किलो के परंपरागत बम भी तैनात किए जा सकते हैं। यह दुश्‍मन की जमीन पर हमला करने के लिए सबसे कारगर बॉम्‍बर माना जाता है।

वर्ष 1997 में एक B-2 स्पिरिट बॉम्‍बर की कीमत करीब 2.1 अरब डॉलर थी। अमेरिका के पास कुल 20 B-2 स्पिरिट स्‍टील्‍थ बॉम्‍बर हैं। यह बॉम्‍बर 50 हजार फुट की ऊंचाई पर उड़ान भरते हुए 11 हजार किलोमीटर तक मार कर सकने में सक्षम है। एक बार रिफ्यूल कर देने पर यह 19 हजार किलोमीटर तक हमला कर सकता है। इस विमान ने कोसोवा, इराक, अफगानिस्‍तान और लीबिया में अपनी क्षमता साबित की है।


'क्वॉड में शामिल नहीं हो रहे'


रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव द्वारा क्वॉड की ‘एशियाई नाटो’ कहकर आलोचना करने के बारे में और इस समूह में भारत की भागीदारी पर राय के बारे में पूछने पर पुतिन ने कहा , 'हम क्वॉड में शामिल नहीं हो रहे हैं और किसी अन्य देश के किसी भी पहल में शामिल होने पर मूल्यांकन करने का काम मेरा नहीं है, हर एक संप्रभु राष्ट्र को यह निर्णय लेने का अधिकार है कि वे किसके साथ और किस हद तक अपने संबंधों को बढ़ाना चाहता है। मेरा सिर्फ इतना ही मानना है कि देशों के बीच कोई भी साझेदारी करने का उद्देश्य किसी अन्य राष्ट्र के खिलाफ लामबंदी नहीं होनी चाहिए, बिलकुल भी नहीं।'

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ 16 जून को प्रस्तावित अपनी पहली शिखर-वार्ता से पूर्व रूसी राष्ट्रपति ने कहा कि वह इसमें किसी बड़ी सफलता की उम्मीद नहीं कर रहे हैं।


उन्होंने कहा, 'हम पहले कदम नहीं उठा रहे हैं। मैं उन कदमों की बात कर रहा हूं, जिनसे हमारे संबंध बिगड़े। हमने अमेरिका के खिलाफ पाबंदियां नहीं लगाईं, अमेरिका ने ही हर मौके पर ऐसा किया और वह भी बिना किसी आधार के किया।'